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ग़ज़ल
ये ख़्वाब है ख़ुशबू है कि झोंका है कि पल है
ये धुँद है बादल है कि साया है कि तुम हो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
किस को ख़बर थी साँवले बादल बिन बरसे उड़ जाते हैं
सावन आया लेकिन अपनी क़िस्मत में बरसात नहीं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
बीता दीद उम्मीद का मौसम ख़ाक उड़ती है आँखों में
कब भेजोगे दर्द का बादल कब बरखा बरसाओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
कभी झूटे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते
ये बादल उड़ के आते हैं मगर साया नहीं करते