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ग़ज़ल
जिसे मसावी है माज़ी ओ हाल ओ मुस्तक़बिल
उसे रहा नहीं आइंदा बूद-ओ-हस्त से काम
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
ख़ुद में बहर-ओ-बर दमन पर्बत बयाबाँ बूद-ओ-हस्त
ख़ुद से ख़ुद के आसमाँ तक अपनी हर परवाज़ है
राव मोहम्मद उमर
ग़ज़ल
दिमाग़-ए-सैर-ए-नफ़स सोज़-ओ-साज़-ए-रंज-ओ-निशात
मियान-ए-बीम-ओ-रजा है ये बूद-ओ-हस्त मिरा