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ग़ज़ल
कभी फ़ाक़ा-कशी का ग़म न छत की फ़िक्र है लेकिन
ग़रीबी बेटियों का पहले ज़ेवर मोल देती है
ताैफ़ीक़ साग़र
ग़ज़ल
फूल ख़ुशबू उन पे उड़ती तितलियों की ख़ैर हो
सब के आँगन में चहकती बेटियों की ख़ैर हो
अहमद सज्जाद बाबर
ग़ज़ल
वही रहता है सब लेकिन ज़माना छूट जाता है
परी सी बेटियों का मुस्कुराना छूट जाता है
अन्जुमन मंसूरी आरज़ू
ग़ज़ल
बेटियों को साँस लेने दो खुले माहौल में
वर्ना ये बेचारियाँ घुट घुट के ही मर जाएँगी
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
ग़ज़ल
सितारों पर कमंदें डालने का क्या कोई सोचे
यहाँ तो बेटियों के हाथ ही पीले नहीं होते