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ग़ज़ल
न पूछो अक़्ल की चर्बी चढ़ी है उस की बोटी पर
किसी शय का असर होता नहीं कम-बख़्त मोटी पर
सलीम अहमद
ग़ज़ल
जिगर खाने में अपने फ़ाएदा अज़-बस, तू क्या जाने
वो जाने चाशनी चक्खी हो जिस ने दिल की बोटी की
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
बीवी बेटी बहन पड़ोसन थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
तेग़-ए-क़ातिल को गले से जो लगाया 'मुज़्तर'
खिंच के बोली कि बड़े आए तुम अरमान भरे