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ग़ज़ल
लम्हे लम्हे की हर इक रद्द-ओ-बदल का मर्सिया
क्या हमें कहना पड़ेगा अब ग़ज़ल का मर्सिया
शाहिद जमाल
ग़ज़ल
तिरी नींद से बड़ी आँख में मुझे ताबकार करे किरन
मुझे ऐसी धात का क़ल्ब दे जिसे ख़ौफ़-ए-रद्द-ओ-बदल नहीं
तफ़ज़ील अहमद
ग़ज़ल
अज़ल से हिजरत मिरे मुक़द्दर में लिखने वाले
तो क्या कहानी में कोई रद्द-ओ-बदल नहीं है
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
फिर से कुछ उलझी हुई है ज़ीस्त की रद्द-ओ-बदल
फिर मुझे माँ की दुआओं का सहारा चाहिए