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ग़ज़ल
रोज़ दिल में हसरतों को जलता बुझता देख कर
थक चुका हूँ ज़िंदगी का ये रवैया देख कर
ख़ुशबीर सिंह शाद
ग़ज़ल
कितनी तहज़ीबें मिटती हैं फिर बनती है इक तहज़ीब
कितनी नस्लों की मेहनत से एक रवय्या बनता है
इफ़्तिख़ार हैदर
ग़ज़ल
अगर मोहब्बत तिरा रवय्या है फिर पराया तो बाज़ आया
अगर ज़माने तिरी रविश है वही पुरानी तो हार मानी