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ग़ज़ल
ग़लत है इश्क़ में ऐ बुल-हवस अंदेशा राहत का
रिवाज इस मुल्क में है दर्द-ओ-दाग़-ओ-रंज-ओ-कुलफ़त का
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ज़ोर और ज़र बग़ैर इश्क़ क्या करूँ 'हफ़ीज़'
चल गया है मुल्क में ये रिवाज क्या करूँ
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
रिवाज-ए-इश्क़ के आईं वही हैं किश्वर-ए-दिल में
रह-ओ-रस्म-ए-वफ़ा जारी जो आगे थी सो अब भी है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
ज़ालिम ये बज़्म-ए-हुस्न का अच्छा रिवाज है
तू शम्अ हो के भी न जले मैं तपाँ रहूँ
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ख़ूबान-ए-रोज़गार मुक़ल्लिद तिरे हैं सब
जो चीज़ तू करे सो वो पावे रिवाज आज