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ग़ज़ल
वही मुंसिफ़ों की रिवायतें वही फ़ैसलों की इबारतें
मिरा जुर्म तो कोई और था प मिरी सज़ा कोई और है
सलीम कौसर
ग़ज़ल
ज़िंदा रखीं बुज़ुर्गों की हम ने रिवायतें
दुश्मन से भी मिले तो मिले आजिज़ी से हम
माजिद अली काविश
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
इक मुश्त-ए-ख़ाक आग का दरिया लहू की लहर
क्या क्या रिवायतें हैं यहाँ आदमी के साथ
अख़तर इमाम रिज़वी
ग़ज़ल
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
बंदे ज़मीन और आसमाँ सरमा की शब कहानियाँ
सच्ची हैं ये रिफाक़तें बाक़ी हैं सब कहानियाँ
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
किसे मा'लूम क्या होगा मआल आइंदा नस्लों का
जवाँ हो कर बुज़ुर्गों की रिवायत छोड़ दी हम ने