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ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
तसव्वुर से लब-ए-लालीं के तेरे हम अगर रो दें
तो जो लख़्त-ए-जिगर आँखों से निकले इक रक़म निकले
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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तसव्वुर से लब-ए-लालीं के तेरे हम अगर रो दें
तो जो लख़्त-ए-जिगर आँखों से निकले इक रक़म निकले