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ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
अब नहीं ताब-ए-सिपास-ए-हुस्न इस दिल को जिसे
बे-क़रार-ए-शिकव-ए-बेजा समझ बैठे थे हम
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तो क्या सारे गिले-शिकवे अभी कर लोगे मुझ से
कुछ अब कल के लिए रक्खो मुझे नींद आ रही है
मोहसिन असरार
ग़ज़ल
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
गिले शिकवे कहाँ तक होंगे आधी रात तो गुज़री
परेशाँ तुम भी होते हो परेशाँ हम भी होते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से कि इस में आग दबी है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
है करम उन के सितम का कि करम भी है सितम
शिकवे सुन सुन के वो होते हैं पशीमाँ क्या क्या
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
हों अजब तरह की शिकायतें हों अजब तरह की इनायतें
तुझे मुझ से शिकवे हज़ार हों मुझे तुझ से कोई गिला न हो
नवाज़ देवबंदी
ग़ज़ल
जितने शिकवे हैं तुझी से हैं कि इस आलम में
मुझ को बुलबुल किया सय्याद को सय्याद किया
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
उल्टे वो शिकवे करते हैं और किस अदा के साथ
बे-ताक़ती के ताने हैं उज़्र-ए-जफ़ा के साथ
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
इश्क़ से तौबा भी है हुस्न से शिकवे भी हज़ार
कहिए तो हज़रत-ए-दिल आप का मंशा क्या है