आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "सुर्मा-ए-ख़ाक-ए-मदीना"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "सुर्मा-ए-ख़ाक-ए-मदीना"
ग़ज़ल
गिरा तो गिर के सर-ए-ख़ाक-ए-इब्तिज़ाल आया
मैं तेग़-ए-तेज़ था लेकिन मुझे ज़वाल आया
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
ग़ज़ल
इज़्तिराब-ए-ख़ाक-ए-अमजद में कहीं रहता है वो
काएनात-ए-रूह-ए-अहमद में कहीं रहता है वो
मोहम्मद अजमल नियाज़ी
ग़ज़ल
जिसे मिल जाए ख़ाक-ए-पाक-ए-दश्त-ए-कर्बला 'परवीं'
पलट कर भी न देखे वो कभी इक्सीर की सूरत
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मुल्कों मुल्कों शहरों शहरों जोगी बन कर घूमा कौन
क़र्या-ब-क़र्या सहरा-ब-सहरा ख़ाक ये किस ने फाँकी है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जब हो दम-ए-आख़िर तो बचा लेने की ताक़त
फिर ख़ाक-ए-शिफ़ा में न कहीं आब-ए-बक़ा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ये ज़र्रे जिन को हम ख़ाक-ए-रह-ए-मंज़़िल समझते हैं
ज़बान-ए-हाल रखते हैं ज़बान-ए-दिल समझते हैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
ख़ाक-ए-'शिबली' से ख़मीर अपना भी उट्ठा है 'फ़ज़ा'
नाम उर्दू का हुआ है इसी घर से ऊँचा