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ग़ज़ल
उस की सुख़न-तराज़ियाँ मेरे लिए भी ढाल थीं
उस की हँसी में छुप गया अपने ग़मों का हाल भी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए
हम हँस दिए हम चुप रहे मंज़ूर था पर्दा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद