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ग़ज़ल
बस-कि हंगामा-तलब था ये वहाँ पहले से
फ़ित्ना-ए-हश्र भी होवेगा मियान-ए-देहली
तफ़ज़्ज़ुल हुसैन ख़ान कौकब देहलवी
ग़ज़ल
हंगामा बपा हश्र का ऐ दोस्तो जब हो
साक़ी-ए-गुल-अंदाम हो और बिन्त-ए-इनब हो
मोहम्मद शम्सुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
लुत्फ़-आमेज़ हर अंदाज़-ए-सितम होता है
दर्द-ए-बीमार न बढ़ता है न कम होता है
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
मिरी चश्म-ए-तलब में ख़्वाब का हंगामा ख़ेमा-ज़न
मगर ताबीर मिस्ल-ए-कज-अदा ख़ामोश रहती है
सुल्तान अख़्तर
ग़ज़ल
न वो नालों की शोरिश है न ग़ुल है आह-ओ-ज़ारी का
वो अब पहला सा हंगामा नहीं है बे-क़रारी का