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मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है

सुल्तान अख़्तर

मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है

सुल्तान अख़्तर

MORE BYसुल्तान अख़्तर

    मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है

    कि दरवेशों की हाजत तो सदा ख़ामोश रहती है

    ख़ुशी का जश्न हो या मातम-ए-मर्ग-ए-तमन्ना हो

    यहाँ हर हाल में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ख़ामोश रहती है

    शजर को वज्द आता है तो शाख़ें लचकती हैं

    बहारों में भी अब बाद-ए-सबा ख़ामोश रहती है

    मिरी चश्म-ए-तलब में ख़्वाब का हंगामा ख़ेमा-ज़न

    मगर ताबीर मिस्ल-ए-कज-अदा ख़ामोश रहती है

    दरून-ए-ख़ाना-ए-दिल रोज़ शब महशर बपा लेकिन

    ज़बाँ अपनी बराए-तजरबा ख़ामोश रहती है

    चमक उठते हैं जब चेहरे तब-ओ-ताब-ए-तमन्ना से

    तो फिर शाइस्तगी-ए-आईना ख़ामोश रहती है

    मिरे चारों तरफ़ अक्स-ए-तिलिस्म-ए-सामरी रौशन

    ख़मोशी चीख़ती है और सदा ख़ामोश रहती है

    लरज़ जाती हैं पलकें अश्क जम जाते हैं आँखों में

    जब अपनी ख़्वाहिश-ए-बे-साख़्ता ख़ामोश रहती है

    दरख़्तों की बग़ावत है कि ये मौसम की बे-रहमी

    कि जंगल आह भरता है हवा ख़ामोश रहती है

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    सुल्तान अख़्तर

    सुल्तान अख़्तर,

    सुल्तान अख़्तर

    मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है सुल्तान अख़्तर

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