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ग़ज़ल
वो बहर-ए-हुस्न शायद बाग़ में आवेगा ऐ 'एहसाँ'
कि फ़व्वारा ख़ुशी से आज दो दो गज़ उछलता है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
बहर-ए-इम्काँ में हबाब-आसा है कश्ती-ए-वजूद
नक़्श-ए-फ़ानी हर तमव्वुज सैल-ए-आफ़त-गीर का
बेबाक भोजपुरी
ग़ज़ल
यूँ तो समझे सुने आती नहीं 'एहसाँ' को समझ
क्या तमाशा हो कि दिल ले के मुकर जाए कोई