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ग़ज़ल
तुम्हारे पास आते हैं तो साँसें भीग जाती हैं
मोहब्बत इतनी मिलती है कि आँखें भीग जाती हैं
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
घर की बुनियादें दीवारें बाम-ओ-दर थे बाबू जी
सब को बाँध के रखने वाला ख़ास हुनर थे बाबू जी
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैं ने देखा है
कोई तो है जिसे अपने में पलते मैं ने देखा है
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं
जिसे हम जी नहीं पाए उसी को जीते रहते हैं
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
धूप हुई तो आँचल बन कर कोने कोने छाई अम्माँ
सारे घर का शोर-शराबा सूना-पन तन्हाई अम्माँ