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ग़ज़ल
मेराज की सी हासिल सज्दों में है कैफ़िय्यत
इक फ़ासिक़-ओ-फ़ाजिर में और ऐसी करामातें
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
'इश्क़-बाज़ी और शय है फ़िस्क़ है कुछ और चीज़
नेक-नामी को न कह 'परवीं' कि रुस्वाई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
फ़ासिक़ जो अगर आशिक़-ए-दीवाना हुआ तो क्या
दुनिया के मतालिब को फ़रज़ाना हुआ तो क्या
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
लज़्ज़त को उस के समझें हैं क्या साहिब-ए-वर'अ
कोई पूछे अहल-ए-फ़िस्क़ से तो बाह का मज़ा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
फ़ुजूर-ओ-फ़िस्क़ की तारीकियों में जब कोई भटका
दिखाई दूर से ही उस को लाईट उस के ईमाँ ने
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
दलील-क़ाते-ए-बातिल तिरी शमशीर हो 'अंजुम'
अदू-ए-फ़ासिक़-ओ-फ़ाजिर अज़ीज़-ए-बे-कसाँ हो जा
रिज़वान अंजुम
ग़ज़ल
थी बात दिल में तो मा'सूमियत का जौहर थी
चढ़ी ज़बाँ पे तो फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर तक पहुँची
मसूद क़ुरैशी
ग़ज़ल
अब फ़िस्क़-ए-ज़मीं का है असर अर्श-ए-बरीं तक
टलती हो क़यामत भी तो टलने नहीं देते