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ग़ज़ल
पहले पहले शौहर को हर मौसम भीगा लगता है
यूँ समझो बिल्ली के भागों टूटा छीका लगता है
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
ग़ज़ल
आज शब-ए-ग़म रास आए तो अपनी बात भी रह जाए
अँधियारे की कोख में यूँ तो पहले सूरज पलता था