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ग़ज़ल
कंघे से घनेरी ज़ुल्फ़ों में यूँ लहरें उठती जाती हैं
जैसे कि धुँदलका सावन का बढ़ता जाए बढ़ता जाए
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
खिंची कंघी गुँधी चोटी जमी पट्टी लगा काजल
कमाँ-अबरू नज़र जादू निगह हर इक दुलारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कल मैं ने कहा उस से क्या दिल में ये आया जो
कंघी है न चोटी है मिस्सी है न काजल है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मैं किंगरा-ए-अर्श से पर मार के गुज़रा
अल्लाह-रे रसाई मिरी पर्वाज़ तो देखो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
काजल मेहंदी पान मिसी और कंघी चोटी में हर आन
क्या क्या रंग बनावेगी और क्या क्या नक़्शे ढालेगी
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
जो ख़ालिस नेता है वा'दे का पक्का हो नहीं सकता
कि जैसे जेब में गंजे के कंघा हो नहीं सकता
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
अतीक़ अंज़र
ग़ज़ल
'नव्वाब' अपने दिल को मैं क्यूँ-कर निकालता
कंघी उलझ के ज़ुल्फ़-ए-रसा ही में रह गई
नवाब कल्ब अली ख़ान
ग़ज़ल
नाज़ फ़रमाए शबाब ऐ नय्यर-ए-ताबान-ए-हुस्न
तार चाँदी का तिरी कंघी के दंदाने में है