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ग़ज़ल
सबा से करते हैं ग़ुर्बत-नसीब ज़िक्र-ए-वतन
तो चश्म-ए-सुब्ह में आँसू उभरने लगते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
आँखें पुर-नम हो जाती हैं ग़ुर्बत के सहराओं में
जब उस रिम-झिम की वादी के अफ़्साने याद आते हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कुंज-ए-ग़ुर्बत मैं कभी गोशा-ए-ज़िंदाँ में थे हम
जान-ए-जाँ जब भी तिरे आने का मौसम आया
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
शिकस्त-ए-दिल का बाक़ी हम ने ग़ुर्बत में असर रखा
लिखा अहल-ए-वतन को ख़त तो इक गोशा कतर रक्खा
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
क्या रहूँ ग़ुर्बत में ख़ुश जब हो हवादिस का ये हाल
नामा लाता है वतन से नामा-बर अक्सर खुला
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
शरह-ए-फ़िराक़ मदह-ए-लब-ए-मुश्कबू करें
ग़ुर्बत-कदे में किस से तिरी गुफ़्तुगू करें