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ग़ज़ल
मंज़ूर हाशमी
ग़ज़ल
बे-नियाज़-ए-सौत-ओ-महरूम-ए-बयाँ रक्खा गया
या'नी हर्फ़-ए-शौक़ को ज़ेर-ए-ज़बाँ रक्खा गया
एजाज़ अासिफ़
ग़ज़ल
ये तजरबात की वुसअत ये क़ैद-ए-सौत-ओ-सदा
न पूछ कैसे कड़े हैं ये अर्ज़-ए-हाल के दिन
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
ये शहर-ए-सौत-ओ-सदा है न है ये दश्त-ए-सुकूत
यहाँ से बच के निकलने का रास्ता भी नहीं