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पलक पलक सैल-ए-ग़म 'अयाँ है न कोई आहट न कोई हलचल

नुसरत ग्वालियारी

पलक पलक सैल-ए-ग़म 'अयाँ है न कोई आहट न कोई हलचल

नुसरत ग्वालियारी

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    पलक पलक सैल-ए-ग़म 'अयाँ है कोई आहट कोई हलचल

    कसक ये कैसी दरून-ए-जाँ है कोई आहट कोई हलचल

    हमारी बस्ती में हर तरफ़ इंक़लाब-ए-नौ का 'अमल था जारी

    जाने ये कौन सा जहाँ है कोई आहट कोई हलचल

    लहू उछलने का शोर जैसे फ़ज़ा में गूँजा कभी नहीं था

    ये हुक्म-ए-शहर-ए-सितमगराँ है कोई आहट कोई हलचल

    हो सुब्ह-ए-रौशन कि शाम-ए-रंगीं किसी में कोई कशिश नहीं है

    हर एक ख़्वाहिश धुआँ धुआँ है कोई आहट कोई हलचल

    नए ज़माने की मैं बशारत का मुंतज़िर हूँ मगर अभी तक

    हयात ऐसे रवाँ-दवाँ है कोई आहट कोई हलचल

    हुजूम-ए-सौत-ओ-सदा सड़क पर जुलूस बन कर निकल पड़ा है

    समा'अतों का ये इम्तिहाँ है कोई आहट कोई हलचल

    मैं अपने अंदर जहाँ छुपा हूँ कोई पहुँचा वहाँ अभी तक

    सुकूत हर सम्त बे-कराँ है कोई आहट कोई हलचल

    फ़ज़ा की रौनक़ ज़मीं की सज धज क़लम की जुम्बिश पे मुनहसिर है

    'अजीब पाबंदी-ए-ज़बाँ है कोई आहट कोई हलचल

    मिरे तसव्वुर की नीलगूँ झील में एक तारा जहाँ गिरा था

    वहाँ ख़मोशी बला-ए-जाँ है कोई आहट कोई हलचल

    बढ़ूँ तो आगे धुएँ के बादल हटूँ तो पीछे बलाओं के दिल

    ये कैसा मंज़र यहाँ वहाँ है कोई आहट कोई हलचल

    सुकूत सीने में ऐसा कब था गुमाँ भी गुज़रे धड़कनों का

    ख़ुदा ही जाने कि दिल कहाँ है कोई आहट कोई हलचल

    स्रोत :
    • पुस्तक : Sab Khwab (पृष्ठ 100)
    • रचनाकार : Nusrat Gwaliory
    • प्रकाशन : Nusrat Gwaliory, Tahzeeb Urdu 5071, Kucha Rahman Pandit, Chandni Chouck, Delhi (1998)
    • संस्करण : 1998

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