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ग़ज़ल
हर्फ़ नहीं जाँ-बख़्शी में उस की ख़ूबी अपनी क़िस्मत की
हम से जो पहले कह भेजा सो मरने का पैग़ाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमा-ए-ख़ूबी
मुलाक़ाती तिरा गोया भरी महफ़िल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
देखा हूँ तुझे ख़्वाब में ऐ माया-ए-ख़ूबी
इस ख़्वाब को जा यूसुफ़-ए-कनआँ' सूँ कहूँगा
वली मोहम्मद वली
ग़ज़ल
कहूँ क्या ख़ूबी-ए-औज़ा-ए-अब्ना-ए-ज़माँ 'ग़ालिब'
बदी की उस ने जिस से हम ने की थी बार-हा नेकी
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
झिलमिलाती है सर-ए-बज़्म-ए-जहाँ शम-ए-ख़ुदी
जो ये बुझ जाए चराग़-ए-रह-ए-इरफाँ हो जाए