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ग़ज़ल
मैं हाथ हाथों में उस के न दे सका था 'शुमार'
वो जिस की मुट्ठी में लम्हा बड़ा सुहाना था
अख्तर शुमार
ग़ज़ल
वो मुस्कुरा के कोई बात कर रहा था 'शुमार'
और उस के लफ़्ज़ भी थे चाँदनी में बिखरे हुए
अख्तर शुमार
ग़ज़ल
अल्लाह मिरा ग़फ़ूर मोहम्मद मिरे शफ़ीअ'
'माइल' को ख़ौफ़ कुछ नहीं रोज़-ए-शुमार का