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ग़ज़ल
हों जो सारे दस्त ओ पा हैं ख़ूँ मैं नहलाए हुए
हम भी हैं ऐ दिल बहाराँ की क़सम खाए हुए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया
ऐ फ़लक क्या क्या हमारे दिल में अरमाँ रह गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
अक़ाएद वहम हैं मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी
अज़ल से ज़ेहन-ए-इंसाँ बस्ता-ए-औहाम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
हूँ आँखें एक ख़्वाब पे क़ुर्बान करके ख़ुश
और जिस्म नज़्र-ए-आतिश-ए-विज्दान करके ख़ुश
यासिर ख़ान इनाम
ग़ज़ल
ऐश से क्यूँ ख़ुश हुए क्यूँ ग़म से घबराया किए
ज़िंदगी क्या जाने क्या थी और क्या समझा किए