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ग़ज़ल
वो मिरे दिल की परेशानी से अफ़्सुर्दा हो क्यूँ
दिल का क्या है कल को फिर अच्छा भला हो जाएगा
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
नग़्मा है 'नुशूर' अपना अफ़्सुर्दा-ए-ग़म लेकिन
एहसास की महफ़िल में कुछ रंग तो आया है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
बहुत पहले से अफ़्सुर्दा चले आते हैं हम तो
बहुत पहले कि जब अफ़्सुर्दगी होती नहीं थी
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
ऐ अदू-ए-मस्लहत चंद ब-ज़ब्त अफ़्सुर्दा रह
करदनी है जम्अ' ताब-ए-शोख़ी-ए-दीदार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इश्क़ अफ़्सुर्दा नहीं आज भी अफ़्सुर्दा बहुत
वही कम कम असर-ए-सोज़-ए-निहाँ है कि जो था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
हनूज़ इक परतव-ए-नक़्श-ए-ख़याल-ए-यार बाक़ी है
दिल-ए-अफ़सुर्दा गोया हुजरा है यूसुफ़ के ज़िंदाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
चमन बे-रंग अफ़्सुर्दा कली हर फूल बे-ख़ुश्बू
बहारों की फ़ज़ा भी इस बरस लाई उदासी है