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ग़ज़ल
अहद-ए-तिफ़्ली में जिसे ज़ीस्त का हासिल जाना
वक़्त का अब उन्ही बातों में ज़ियाँ होता है
जावेद मंज़र
ग़ज़ल
अहद-ए-तिफ़्ली से बुढ़ापे का सफ़र था कि घुटन
ख़त्म हो जाए ये ज़हरीली फ़ज़ा मेरे बा'द
दाऊद काश्मीरी
ग़ज़ल
जहाँ वाले मुक़य्यद हैं अभी तक अहद-ए-तिफ़्ली में
यहाँ अब भी खिलौने रौनक़-ए-बाज़ार होते हैं
अब्बास क़मर
ग़ज़ल
अहद-ए-तिफ़्ली में भी था मैं बस-कि सौदाई-मिज़ाज
बेड़ियाँ मिन्नत की भी पहनीं तो मैं ने भारियाँ
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
अबू लेवीज़ा अली
ग़ज़ल
अहद-ए-तिफ़्ली से जुनून-ए-इश्क़ कामिल है शफ़ीक़
शाख़-ए-नख़्ल-ए-बेद-ए-मजनूँ से मिरा गहवारा था
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
तिफ़्ली-ओ-अहद-ए-जवानी का न पूछो अहवाल
बे-ख़ुदी आगे थी अब बे-ख़बरी रहती है
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
ग़ज़ल
'अहद-ए-नौ में कुछ नहीं मिलता है क़ीमत के बग़ैर
अब मसीहा ने रविश अपनी पुरानी छोड़ दी