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ग़ज़ल
ग़ुरूब-ए-शाम ही से ख़ुद को यूँ महसूस करता हूँ
कि जैसे इक दिया हूँ और हवा की ज़द पे रक्खा हूँ
ज़ुबैर रिज़वी
ग़ज़ल
दोस्त ख़ुश होते हैं जब दोस्त का ग़म देखते हैं
कैसी दुनिया है इलाही जिसे हम देखते हैं
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
हज़ार आरज़ू हो तुम यक़ीं हो तुम गुमाँ हो तुम
क़फ़स-नसीब रूह की उमीद-ए-आशियाँ हो तुम
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
कब है मंज़ूर कि यूँ जिंस-ए-दिल-ए-ज़ार बिके
पर ये वो शय है न बेचूँ भी तो सौ बार बिके
क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल
शराब-ए-इश्क़ से मख़मूर सब ख़ुर्द-ओ-कलाँ होंगे
तुयूर-ए-बाग़-ए-उल्फ़त महव-ए-दीदार-ए-बुताँ होंगे
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म था बर्ग-ए-हिना के होते हुए
ज़ुबैर रिज़वी
ग़ज़ल
मुझे आमाजगाह-ए-नावक-ए-बेदाद रहने दे
जो इस का नाम बर्बादी है तो बर्बाद रहने दे
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
नज़र में जज़्ब शम्अ-ए-रुख़ का जल्वा कर लिया मैं ने
दिल-ए-तारीक में आख़िर उजाला कर लिया मैं ने