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ग़ज़ल
इस तिलिस्म-ए-रोज़-ओ-शब से तो कभी निकलो ज़रा
कम से कम विज्दान के सहरा ही में घूमो ज़रा
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
ग़ज़ल
ख़्वाहिश-ए-इल्म है फ़ुज़ूल हर्फ़-ए-ग़लत है इंकिशाफ़
एक तिलिस्म-ए-राज़ है हस्ती-ए-कारसाज़ में
साक़िब रामपुरी
ग़ज़ल
वक़्फ़ा-ए-उम्र एक दम हैफ़ है वो भी सर्फ़-ए-ग़म
किस को है ए'तिमाद-ए-रोज़ किस को है ए'तिबार-ए-शब