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ग़ज़ल
ये क्या तिलिस्म है दुनिया पे बार गुज़री है
वो ज़िंदगी जो सर-ए-रहगुज़ार गुज़री है
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
मय हो साग़र में कि ख़ूँ रात गुज़र जाएगी
दिल को ग़म हो कि सुकूँ रात गुज़र जाएगी
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं
वो तो बिचारे ख़ुद हैं भिकारी डेरे डेरे फिरते हैं
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
कहो बुतों से कि हम तब्अ सादा रखते हैं
फिर उन से अर्ज़-ए-वफ़ा का इरादा रखते हैं
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
यही था वक़्फ़ तिरी महफ़िल-ए-तरब के लिए
चराग़-ए-दिल कि सुलगता है आज सब के लिए
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
वस्फ़-ए-ख़ूबाँ ब-हदीस-ए-दिगराँ है कि जो था
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो
अदा-शनास तो है आँख ख़ूँ-चकाँ भी तो हो