aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "albam"
सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैंसो हम बहार पे इल्ज़ाम धर के देखते हैं
मैं तो हर लम्हा बदलते हुए मौसम में रहूँकोई तस्वीर नहीं जो तिरे अल्बम में रहूँ
हर चेहरा हर रंग में आने लगता हैपेश-ए-नज़र यादों के अल्बम होते हैं
जो नक़्श कि अर्ज़ंग-ए-ज़माना में नहीं हैउस दिल के धड़कते हुए अल्बम को मिलेगा
क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू परचमन और भी आशियाँ और भी हैं
वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बरबाद किया हैइल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो हैदुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है
वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थीकि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी
जुज़ नाम नहीं सूरत-ए-आलम मुझे मंज़ूरजुज़ वहम नहीं हस्ती-ए-अशिया मिरे आगे
अजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने काकि यहाँ सब के सर गया हूँ मैं
आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहींरग-ए-मीना सुलग उट्ठी कि रग-ए-जाँ जानाँ
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार मेंकिस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में
पहुँचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक क्यूँ कर हमपहले जब तक न दो आलम से गुज़र जाएँगे
चश्म-ए-दिल खोल इस भी आलम परयाँ की औक़ात ख़्वाब की सी है
उस रोज़ जो उन को देखा है अब ख़्वाब का आलम लगता हैउस रोज़ जो उन से बात हुई वो बात भी थी अफ़साना क्या
इश्क़ ही इश्क़ है जहाँ देखोसारे आलम में भर रहा है इश्क़
मैं उन में आज तक कभी पाया नहीं गयाजानाँ जो मेरे शौक़ के आलम मिले तुम्हें
है तो बारे ये आलम-ए-असबाबबे-सबब चीख़ने लगा कीजे
अगर ख़ुदा ने बनाने का इख़्तियार दियाअलम बनाऊँगा बर्छी नहीं बनाऊँगा
आओ इक सज्दा करें आलम-ए-मदहोशी मेंलोग कहते हैं कि 'साग़र' को ख़ुदा याद नहीं
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