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ग़ज़ल
फ़रेब-ए-हुस्न से गब्र-ओ-मुसलमाँ का चलन बिगड़ा
ख़ुदा की याद भूला शैख़ बुत से बरहमन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
ख़राबा और होता है ख़राब आहिस्ता आहिस्ता
दयार-ए-दिल पे आते हैं अज़ाब आहिस्ता आहिस्ता
कामरान नदीम
ग़ज़ल
उम्र बढ़ती जा रही है ज़ीस्त घटती जाए है
जिस्म की ख़ुश्बू की ख़्वाहिश दूर हटती जाए है
कृष्ण मोहन
ग़ज़ल
रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-नाशाद हैं हम
परवरिश-याफ़्ता-ए-ख़ाना-ए-सय्याद हैं हम
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब
मुस्तहिक़ दार के फाँसी के सज़ा-वार हैं सब