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ग़ज़ल
कुछ मोहब्बत में अजब शेव-ए-दिल-दार रहा
मुझ से इंकार रहा ग़ैर से इक़रार रहा
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
ग़ज़ल
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं
तुम शहर-ए-मोहब्बत कहते हो हम जान बचा कर आए हैं
सुदर्शन फ़ाकिर
ग़ज़ल
मुझे रंज होगा न मौत का अगर ऐसी मौत नसीब हो
मिरा दम जो निकले तो ऐ ख़ुदा मिरे पास मेरा हबीब हो
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
वही होती है रहबर जो तमन्ना दिल में होती है
ब-क़द्र-ए-हिम्मत-ए-रह-रौ कशिश मंज़िल में होती है
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
शहर-ए-मज़लूम में इक शख़्स भी बरहम न मिला
ख़ौफ़ इतना था कोई पैकर-ए-मातम न मिला