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ग़ज़ल
अपनी ख़ातिर छोड़िए औरों की ख़ातिर ही सही
कम से कम महफ़िल में तुम को मुस्कुराना चाहिए
इमरान साग़र
ग़ज़ल
मुझे कैसे दश्त में लाए तुम कि सदी सदी के सफ़र पे भी
वही रंग-ओ-नस्ल की वहशतें वही मा-ओ-मन की उदासियाँ
शमीम करहानी
ग़ज़ल
ख़ुद-सरी नज़रों से औरों के उतर जाने का नाम
बुज़दिली साए से अपने आप डर जाने का नाम
अतीक़ अहमद जाज़िब
ग़ज़ल
रविश में औरों के अस्लाफ़ की रविश न रही
सो क़िस्से लिक्खे गए मेरे ही नसब के सब
ख़्वाज़ा रज़ी हैदर
ग़ज़ल
लम्हा लम्हा जोड़ कर औरों को सदियाँ बख़्श दीं
ख़ुद सदी का क़त्ल कर के साअ'तों में बट गया