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ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-हसरत-ए-दिल ज़ुल्म भी ढाना नहीं आता
वो क्या तस्कीन देंगे जिन को तड़पाना नहीं आता
रशीद शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को
अज़ीज़ क्यूँ न रखें ज़िंदगी के हासिल को
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
उमीद-ए-मेहर पर इक हसरत-ए-दिल हम भी रखते थे
तमन्ना वस्ल की ऐ माह-ए-कामिल हम भी रखते थे
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
दिल जला फिर ख़ुद जले फिर सारी दुनिया जल उठी
सोज़ लाए थे ब-मिकदार-ए-पर-परवाना हम
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-हसरत-ए-दिल चाहिए ज़ौक़-ए-मआसी भी
भरूँ यक-गोशा-ए-दामन गर आब-ए-हफ़्त-दरिया हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
है दिल-ए-मसरूर-ए-'हसरत' इक तरब-ज़ार-ए-उमीद
फूँक डाले गर न इस गुलशन को नार-ए-इंतिज़ार
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
क्या कोई ख़ुश हो मिरे शेर को सुन के 'हसरत'
दर्द-ए-दिल है ये नहीं ऐश-ओ-तरब का अहवाल
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
हमारी बे-ज़बानी है ज़बान-ए-हाल से गोया
निगाह-ए-वापसीं तो तर्जुमान-ए-हसरत-ए-दिल है