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ग़ज़ल
सुब्ह-ए-काज़िब की हवा में दर्द था कितना 'मुनीर'
रेल की सीटी बजी तो दिल लहू से भर गया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
मजीद अमजद
ग़ज़ल
अब जाने दूल्हा-भाई में क्या कीड़े पड़ गए
जाने को मनअ' करते हैं बाजी के घर मुझे
साजिद सजनी लखनवी
ग़ज़ल
किस दिन न उठा दिल से मिरे शोर-ए-परस्तिश
किस रात यहाँ काबे में नाक़ूस न बाजी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
वही है दुश्मन ऐ बाजी जो अच्छे वक़्त में लिपटे
वही है दोस्त ऐ बाजी मुसीबत में जो शामिल हो
शैदा इलाहाबादी
ग़ज़ल
पाओं की ज़ंजीर बजी लो मौसम-ए-गुल भी आ ही गया
देर न हो ऐ ज़ौक़-ए-जुनूँ आबाद करें वीराने लोग