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ग़ज़ल
मुझ में बसते सारे सन्नाटों की लय उस से बनी
पत्थरों के दरमियाँ थी नग़्मा-गर उस ने किया
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
दर्द तो साँसों में बस्ते हैं कौन दिखाए तुम्हें
फूलों पर ख़ुशबू का गहना कैसा लगता है
ख़ालिद अहमद
ग़ज़ल
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया