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ग़ज़ल
क्या है बे-यार खटकते हो मिरी आँखों में
ऐ गुलो बाग़ में तुम ख़ार नज़र आते हो
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
बे-यार ये बादल हैं दिल शाम की फ़ौजों के
बौछार है तीरों की बाराँ किसे कहते हैं
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
बे-यार जब लगे मुझे ज़िंदाँ से घर बतर
बर्बाद क्यूँकि इश्क़ में फिर ख़ानदाँ न दूँ