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ग़ज़ल
ये वक़्त आने पे अपनी औलाद अपने अज्दाद बेच देगी
जो फ़ौज दुश्मन को अपना सालार गिरवी रख कर पलट रही है
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
मुश्किल हैं अगर हालात वहाँ दिल बेच आएँ जाँ दे आएँ
दिल वालो कूचा-ए-जानाँ में क्या ऐसे भी हालात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
चाहत के बदले में हम तो बेच दें अपनी मर्ज़ी तक
कोई मिले तो दिल का गाहक कोई हमें अपनाए तो
अंदलीब शादानी
ग़ज़ल
यही शैख़-ए-हरम है जो चुरा कर बेच खाता है
गलीम-ए-बूज़र ओ दलक़-ए-उवेस ओ चादर-ए-ज़हरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अपनी ग़ैरत बेच डालें अपना मस्लक छोड़ दें
रहनुमाओं में भी कुछ लोगों का ये मंशा तो है