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ग़ज़ल
मीठी धुन में गा के हमें बुलाता है इस मंदिर में
कौन भगत ये सुब्ह-सवेरे आता है इस मंदिर में
कुमार पाशी
ग़ज़ल
बज़्म में 'आरिफ़' की क्यों होती है ये आओ-भगत
ग़ालिबन उस पर निगाह-ए-दोस्ताँ पहले से है
आ़रिफ़ देहल्वी
ग़ज़ल
संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे
इस लोक को भी अपना न सके उस लोक में भी पछताओगे
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
क्या गुल खिलेगा देखिए है फ़स्ल-ए-गुल तो दूर
और सू-ए-दश्त भागते हैं कुछ अभी से हम