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ग़ज़ल
ख़ुद में उतरें तो पलट कर वापस आ सकते नहीं
वर्ना क्या हम अपनी गहराई को पा सकते नहीं
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
होंटों पर महसूस हुई है आँखों से मादूम रही है
फुलवारी की ''निगहत-दुल्हन' फुलवारी में घूम रही है
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
अदू-ए-बद-गुमाँ की दास्ताँ कुछ और कहती है
मगर तेरी निगाह-ए-ख़ुश-बयाँ कुछ और कहती है
साहिर होशियारपुरी
ग़ज़ल
वो समझता है उसे जो राज़-दार-ए-नग़्मा है
आह कहते हैं जिसे सिर्फ़ इक शरार-ए-नग़्मा है