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ग़ज़ल
थक हार के जो भी आता है जी भर के प्यास बुझाता है
ऐ धर्म पे मरने वाले बता क्या धर्म है नदिया के तट का
बेकल उत्साही
ग़ज़ल
सय्यद-नगरी नई-निराली भोर-फटे सब रद्दी वाले
रोज़ पुकारें रद्दी बेचो आख़िर कितनी रद्दी है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
खोल के घूँघट के पट प्यार से करती है प्रणाम मुझे
भोर भए जब नीर भरन को वो पनघट पर आती है
नासिर शहज़ाद
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले