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ग़ज़ल
कोई बात ऐसी अगर हुई कि तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
मिरी क़सम है तुम्हें रहरवान-ए-मुल्क-ए-अदम
ख़ुदा के वास्ते तुम भूलना न जा के मुझे
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ये अजीब इम्तिहाँ है कि तुम्हीं को भूलना है
मिले कब थे इस तरह हम तुम्हें बे-दिली से पहले