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ग़ज़ल
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
किसी और को मिरे हाल से न ग़रज़ है कोई न वास्ता
मैं बिखर गया हूँ समेट लो मैं बिगड़ गया हूँ सँवार दो
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
अब ये सोचूँ तो भँवर ज़ेहन में पड़ जाते हैं
कैसे चेहरे हैं जो मिलते ही बिछड़ जाते हैं
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
देखते ही किसी काफ़िर को बिगड़ जाती है
मैं जो चाहूँ भी तो रहती नहीं निय्यत अच्छी