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ग़ज़ल
ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए
मंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
यूँ तो जो चाहे यहाँ साहब-ए-महफ़िल हो जाए
बज़्म उस शख़्स की है तू जिसे हासिल हो जाए
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
वो ज़कात-ए-दौलत-ए-सब्र भी मिरे चंद अश्कों के नाम से
वो नज़र-गुज़र की शराब थी जो छलक गई मिरे जाम से
सिराज लखनवी
ग़ज़ल
देख कर हर दर-ओ-दीवार को हैराँ होना
वो मिरा पहले-पहल दाख़िल-ए-ज़िंदाँ होना
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
क्या ये भी मैं बतला दूँ तू कौन है मैं क्या हूँ
तू जान-ए-तमाशा है मैं महव-ए-तमाशा हूँ
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
बताऊँ क्या कि मेरे दिल में क्या है
सिवा तेरे तिरी महफ़िल में क्या है