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ग़ज़ल
क्या तीर-ए-सितम उस के सीने में भी टूटे थे
जिस ज़ख़्म को चीरूँ हूँ पैकान निकलते हैं
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
क़स्में तो सारी हो चुकीं बाक़ी रही है अब
पीपल तले के भुतने की शैतान की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक
क्या मज़ा होता अगर पत्थर में भी होता नमक
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
आज मगर इक नार को देखा जाने ये नार कहाँ की है
मिस्र की मूरत चीन की गुड़िया देवी हिन्दोस्ताँ की है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तसव्वुर बहर-ए-तस्कीन-ए-तपीदन-हा-ए-तिफ़्ल-ए-दिल
ब-बाग़-ए-रंग-हा-ए-रफ़्ता गुल-चीन-ए-तमाशा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मुन्नी की भोली बातों सी चटकीं तारों की कलियाँ
पप्पू की ख़ामोशी शरारत सा छुप छुप कर उभरा चाँद
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
चीन पेशानी पे है मौज-ए-तबस्सुम लब में
ऐसे हँसमुख हैं कि ग़ुस्से में हँसा करते हैं