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ग़ज़ल
उस की सुख़न-तराज़ियाँ मेरे लिए भी ढाल थीं
उस की हँसी में छुप गया अपने ग़मों का हाल भी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए
हम हँस दिए हम चुप रहे मंज़ूर था पर्दा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ ये कैसी तन्हाई है
तेरे साथ तिरी याद आई क्या तू सच-मुच आई है