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ग़ज़ल
टुक इक ऐ नसीम सँभाल ले कि बहार मस्त-ए-शराब है
वो जो हुस्न-ए-आलम-ए-नश्शा है उसे अब की ऐन-शबाब है
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ये निगह ये मुँह ये रंगत ये मिसी ये लाल-ए-ख़ंदाँ
ग़ज़ब और तिस पे लेना ये ज़बाँ ब-ज़ेर-ए-दंदाँ