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ग़ज़ल
'बेदार' करूँ किस से मैं इज़हार-ए-मोहब्बत
बस दिल है मिरा महरम-ए-असरार-ए-मोहब्बत
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
फ़क़त क़ज़िया यही है फ़न्न-ए-तबई और इलाही में
जो इल्म-ए-मअरिफ़त चाहे तो रह याद-ए-इलाही में
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
खो दिया नूर-ए-बसीरत तू ने मा-ओ-मन के बीच
जल्वा-गर था वर्ना वो ख़ुर्शीद तेरे मन के बीच
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
कौन याँ बाज़ार-ए-ख़ूबी में तिरा हम-संग है
हुस्न के मीज़ाँ में तेरे महर-ओ-मह पासंग है
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
सफ़ा अल्मास ओ गौहर से फ़ुज़ूँ है तेरे दंदाँ की
कहाँ तुझ लब के आगे क़द्र-ओ-क़ीमत लाल-ओ-मर्जां की