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ग़ज़ल
हमें बाद-ए-मुख़ालिफ़ लाख रोके हम नहीं ख़ाइफ़
हमें आता है मक़्सद के लिए लड़ना जतन करना
इमरान अज़ीम
ग़ज़ल
वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से
कि ख़ुद कहते नहीं कुछ और कहलवाते हैं हाँ मुझ से
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
तेग़-ए-उर्यां पे तुम्हारी जो पड़ी मेरी आँख
चश्म-ए-जौहर से अजी ख़ूब लड़ी मेरी आँख